badge

Thursday, 18 September 2014

First Short Story

मैं और अंकल दोस्त की तरह है कुछ ही दिन पहले उन्होंने मुझे उनकी भतीजी के स्कूल में होने वाली वाद विवाद प्रतियोगिता के बारे में कहा , उनकी भतीजी भी उस प्रतियोगिता में भाग लेना चाहती थी विषय था "जीवन की व्यथता में संवेदनहीन होते रिश्ते " और अंकल ने मुझे इस विषय पर उनकी भतीजी के लिए  लिखने को कहा , प्रतियोगिता तो स्थगित हो गई पर खुद को लिखने से रोक न सका और हाल ही में घटित कुछ घटनाओ ने शक्ल ली इस लेख की 
रिश्ते उन संबंधों या कहे की दो या उससे अधिक लोगो के मध्य आपसी प्रेम भाव को दी गई संज्ञा है जो मानवीय समाज में एक अनोखा स्थान रखते है 
"परिवर्तन संसार का नियम है " ये कहावत तब सच होती दिखलाई पड़ती है जब दुनिया में एक ओर संचार के साधन समूचे विश्व को अपनी मुट्ठी में समेटने में लगे है और दूसरी ओर लोगो के बीच दूरियां दिन पर दिन बढ़ती जा रही है 
कुछ दिन पहले की घटना है मेरे घर के पास एक दादी अपने छोटे  बेटे के साथ रहती है और उनका बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ उनसे दो मंज़िल  नीचे वाले फ्लैट में रहता है ,रक्षाबंधन वाले दिन दादी घर पर अकेली थी उनका छोटे  बेटे  वृंदावनवास  पर थे, त्यौहार का दिन था दादी का खाना बड़े बेटे के घर से आकर बाहर के कमरे में टेबल पर रखा था ,दादी से मिलकर  उनकी बेटी कुछ ही देर पहले गई थी और दादी अपनी बेटी के दिए हुए सामान को सहेज कर रखने की उत्सुकता में  अपनी छड़ी लिए बिना ही अंदर के कमरे में चली गई , वृद्धावस्था में पैरों का लड़खड़ाना आम  बात है और दादी बिना सहारे के चलने में असहज महसूस करती है 
अंदर कमरे में पहुँचते ही पैर लड़खड़ाने की वजह से गिर पड़ी दोनों हाथों का सामान ज़मीन पर बिखर गया 
कुछ घंटो तक दादी को ये भी होश न रहा की वो कहा है और क्या करने  आई थी   होश था तो बस इतना की पैर में दर्द हो रहा  है  और उठने की हालत नही है 
कही से कोई मदद मिले इस आस में ज़ोर ज़ोर से पड़ोसियों और अपने बेटे को पुकार रही थी ज्यादा ज़ोर से चीखने पर दर्द और बढ़ जाता और दादी पुकारना बंद कर देती 
रात हो गयी थी खाना टेबल पर था और दादी अभी तक भूखी प्यासी ज़मीन पर पड़ी थी ,रोज़ की तरह उनके बड़े बेटे ने अपनी बेटी को दादी की खेर खबर लेने भेजा , वो घंटी बजा बजा कर चली गई उसने नीचे जाकर पापा को बताया तो उन्होंने कहा की शायद दादी सो गई है.
सारी रात दादी किसी न किसी को पुकारती रही पर किसी ने न सुनी कमरे की खिड़की खुली होने की वजह से बारिश का पानी अंदर आ रहा था ,खाने का जो सामान दादी रखने आई थी उसकी वजह से उनके पास चीटींया मंडरा  रही थी , भूखे प्यासे रात तो काट ली ; सुबह हुई और ज़मीन पर पड़े पड़े फिरसे पुकारना शुरू किया, पोती  की स्कूल वैन  की आवाज सुनकर थोडी खुश हो गई कि  शायद अब कोई सुनेगा पर  किसी ने न सुना 
कुछ घंटे और गुजर गए और अंततः उनकी आवाज पड़ोस  में रहने वाली आंटी ने सुन ली जल्दी ही उन्होंने दादी की बहु को बुलाकर दरवाजा खोलने की कोशिश की पर नहीं खुल सका ,कुछ और लोगो की मदद से दरवाजा खुला दादी ज़मीन पर पड़ी थी 
लोगो ने एम्बुलेंस बुलाकर उन्हें जैसे तैसे हॉस्पिटल पहुचाया और डॉक्टर के निर्देशानुसार तीन दिन बाद उनका ऑपरेशन हुआ। 
आप सोच रहे होंगे की इस राम कहानी का वाद विवाद से क्या लेना देना पर प्रतियोगिता से बढ़कर विषय पर नज़र डालेंगे और अपने को एक चित्त करके सोचेंगे तो शायद समझ आ जाएगा की इस विषय पर लिखने  को क्यों बाध्य हो गया 
इस घटना के बाद कई प्रश्न मन में उठते है 
वृद्ध माँ को अकेला छोड़ अपने परिवार के साथ अलग रहना क्या उचित है ?
सिर्फ घंटी बजाकर ये संतोष करना की सो गई है कहा तक ठीक है 
इस तरह के कई सवाल उठते है  और सभी पर लोगो का अपना अपना मत है , पर यदि हम इस घटना के बाद खुद ये मनन करे की क्या अभी भी रिश्तों  में कुछ मिठास बाकी है या नही तो दूरियां बढाने वाले अनेक कारण सामने आते है 
इस युग में लोग आसमान की उचाईयों  को जल्द से जल्द छूना  चाहते है और शायद इसी वजह से लोग भौतिकवादी होते जा रहे है, बड़ी गाडी , बड़ा घर, ब्रांडेड कपडे आदि कि चाह में लोग दिन रात पैसे की खोज में लगे है और जो समय अपने अपनों के बीच हसी ठहाकों में गुजरना था वो टीवी पर सीरियल देखने , फेसबुक पर लाइकस और कमेंट्स  में ग़ुज़र रहा है 
दूरियों को बढ़ाने  में शराब ने एक महती भूमिका निभाई है, शराब के नशे में लोग अपने आप को भी भूल जाते है तो दुसरे क्या चीज़ है 
घर , गाडी ,ट्विटर,फेसबुक सब लोगो की सुविधा के लिए बने है पर इन चीज़ो के लिए लोगो को दरकिनार करना इस समाज के लिए घातक है 
जितनी जल्दी सोशल मिडिया के कारण खबरे फैलती  है यदि उतनी  जल्दी आपसी प्रेम और मदद का  हाथ बढे तो भारतीय सभ्यता  का मूल मंत्र "वसुदेव कुटुम्भकम् " साकार होने में वक़्त नही लगेगा।