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Monday, 10 September 2018

एक नज़्म




बारिश अभी थमी है
बादलों का जो घना साया है वो अभी छटा है
गीले फर्श पर चटाई बिछाए  यु आसमां को ताकते
सोचता हूँ
कि  ये सितारे क्यूँ रोशन है
क्या किसी के खुश होने का इज़हार है इनसे
या किसी खबर की आहट इन्हे है
मैं  तो खुश नहीं आज
ये रात का अँधेरा
भीड़ में सन्नाटा
सफर के हर कदम को महसूस कर रहा हूँ
कुछ वो कदम जब मैं  ख़ुशी से दौड़ा था
कुछ वो जहा की ठहर के देखा था ख़ुदको
कुछ वो भी जहां  लड़खड़ा गया
आज जो ये रात और अँधेरा है तो सोचता हूँ  की सुबह कब होगी
इंतज़ार है मुझे उस सवेरे का जब ये आसमान
बारिश से धुली धूप  से चमक उठेगा
वो धूप  जो न किसी की आँखों को चुभे
ना ही किसी के बदन को झुलसा दे
रात गुज़रेगी
दिन होगा
ये सफर ना जाने कब ख़त्म होगा