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Saturday, 4 May 2013

katra waqt ka ...

कतरा - कतरा वक़्त का
यू  ही गुजर जाता है
जैसे दिन , रात  से  बिछड़ जाता है
मिलन तो है लम्हों का
पर सुहाना नज़र आता है
हज़ारों दर्द  नज़रों में
यू  छिपाए जाता है
जिस  ख़ुशी से एक जोकर
 सबको हसाता है
लाख छिपाएँ  दर्द को ,
ये जालिम
फिर भी छलक जाता है
कतरा- कतरा वक़्त का
बस यू  ही गुजर जाता है ...


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